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मैं तो उसी दिन डर गई जब



*डॉ तनुजा कद्रे


मैं तो उसी दिन डर गई जब..

मां की कोख़ में आईं

यहां जी पाऊ या निकाल दी जाऊ,

भरोसा नहीं किसी का

कब बाहर कर दी जाऊ ,

फेक दी जाउ या मार दी जाऊ

उस पर भी किस्मत,जो में बच जाऊ

 

मैं तो उसी दिन डर गई जब...

इस धरा पर आई

जाने कौन खुश होगा

और कौन  कौन कोसेगा की

इतनी मन्नतों  पर भी बेटी ही आई

मेरी किलकरियो  से  हुआ कोई  खुश

तो कोई नाराज,

किसी को मुझ पर नही हुआ नाज़

 

मैं तो उसी दिन डर गई जब..   

कहीं किसी के गोद में आईं

किसी ने समझा मुझे फर्ज 

तो किसी ने माना मुझे कर्ज

किसी ने सोचा मुझे अर्श

तो किसी ने जाना मुझे संघर्ष

 

मैं तो उसी दिन डर गई जब...

आंगन की दहलीज पर आई

किसी के अंदाज से सिमटी तो

किसी का नज़रिया देख घबराई

किसी ने किया नापाक इशारा

तो किसी ने किया मुझसे किनारा

 

मैं तो उसी दिन डर गई जब...

अपने घर से बाहर आई

कोई कैसे चहक गया,

तो कोई कैसे बहक गया,

किसी के दिल में पाप जगा

तो किसी  ने दिया मुझे रूप नया

ईश्वर की  रचना थी में नारी 

पर संसार के नजरिए से में सदा ही हारी

 

मैं तो उसी दिन डर गई जब...

दुनिया की सोच में  आईं

काश हर आदमी बन जाए इंसान और

स्त्री को मिले पूरा सम्मान

तो हर बेटी देखेगी खुला आंसमान

निडर बनेगी , निर्भीक रहेगी 

उसके हौसलों को भी मिलेगी उची उड़ान

घर, समाज और राष्ट्र  को देगी

एक नई पहचान ..   

     

*डॉ तनुजा कद्रे,उज्जैन

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