*संजय वर्मा 'दृष्टि'
महँगाई में
आम आदमी हो जाता
हक्का -बक्का
खुशियों में नहीं बाँट पाता
मिठाई।
जब होती ख़ुशी की खबर
बस अपनों से कह देता
तुम्हारे मुंह में घी शक्कर।
दुःख के आँसू पोछने के लिए
कहाँ से लाता रुमाल ?
तालाबंदी में सब बंद
ढुलक जाते आँसू ।
बढती महंगाई में
ठहरी हुई जिंदगी में
खुद को बोना समझने लगा
और आंसू भी छोटे पड़ने लगे।
जाना है उसको अपने घर
वो पार नहीं कर पाता सड़क
जहाँ उसे पीना है
निशुल्क प्याऊ से ठंडा पानी।
पाँवों के छाले के संग
शुष्क कंठ लिए इंतजार करता
जब मिलेंगी अगली प्याऊ
तब तर कर लूंगा अपना शुष्क कंठ।
अब उसे सड़क पार करने का
इंतजार नहीं
इंतजार है मंहगाई कम होने का
ताकि बांट सके खुशियों में
अपनों को खुशी के आँसू।
*मानवर,जिला -धार (म.प्र )
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ