*क्षितिज जैन
कोई पूछे अगर क्या है मानव की भूल?
क्या है आखिर उसके सारे दुखों का मूल?
उत्तर होगा उसका केवल एक मोह ही
जो चुभता आत्मा में बनकर विषैला शूल।
अरे मानव! क्या कभी तू यह भी सुन पाएगा?
क्या लेकर आया है और क्या लेकर जाएगा?
मोह से मारी गयी है बुद्धि तेरी तभी तू सोचता
कि इस आग को तू पावक डाल कर मिटाएगा।
इस पराये संसार पर तेरा वश न चलता
पर ठोकरे खा भी खुद को नहीं बदलता
औरों में स्थापित करवा कर ममत्व बुद्धि
यह मोह तुझे अनादि काल से है छलता।
इस मोह से ही तू पराये को अपना लेता मान
इस मोह से ही तुझे सच्चाई का न होता भान
खो दिये अपने सारे गुण, अपनी सारी शक्तियाँ
मोहवश ही भूल गया तू स्वयं की भी पहचान।
मोह मेटकर ही बन सकते निष्काम हैं
निर्मोही आतम ही पा सकता विश्राम है
कोई पूछे अगर क्या है मानव की भूल?
क्या है आखिर उसके सारे दुखों का मूल?
उत्तर होगा उसका केवल एक मोह ही
जो चुभता आत्मा में बनकर विषैला शूल।
अरे मानव! क्या कभी तू यह भी सुन पाएगा?
क्या लेकर आया है और क्या लेकर जाएगा?
मोह से मारी गयी है बुद्धि तेरी तभी तू सोचता
कि इस आग को तू पावक डाल कर मिटाएगा।
इस पराये संसार पर तेरा वश न चलता
पर ठोकरे खा भी खुद को नहीं बदलता
औरों में स्थापित करवा कर ममत्व बुद्धि
यह मोह तुझे अनादि काल से है छलता।
इस मोह से ही तू पराये को अपना लेता मान
इस मोह से ही तुझे सच्चाई का न होता भान
खो दिये अपने सारे गुण, अपनी सारी शक्तियाँ
मोहवश ही भूल गया तू स्वयं की भी पहचान।
मोह मेटकर ही बन सकते निष्काम हैं
निर्मोही आतम ही पा सकता विश्राम है
निर्मोही होने से ही मिल सकते सुख सारे
पाना निराकुल शांति -जीना इसीका नाम है।
पाना निराकुल शांति -जीना इसीका नाम है।
*क्षितिज जैन, जयपुर(राज)
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ