*रामगोपाल राही
सृष्टि व अंम्बर के जैसे ,
माँ ममता का छोर नहीं |
ब्रह्मांण्ड में माँ से बढ़ ,,
होता कोई और नहीं ||
जीवन दाता - कड़ी चेतना ,
सचमुच -माँ , माँ होती है |
सच पूछो तो माँ ईश्वर से
कम भी नहीं होती है ||
माँ रामायण माँ गीता है ,
माँ वेदों की वाणी है |
माँ पुराणों की भाषा है ,
सृष्टि , -प्रथम कहानी है |
माँ अमृत की धनी अनोखी ,
जिसका कहीं न सानी है |
मुखरित सरस्वती तो माँ है ,
देती सब को वाणी है ||
बिन माँ के जीवन कल्पना ,
कहाँ बताओ संभव है | ?
सृष्टि का सच माँ है सचमुच ,
देती जीवन संभव है ||
माँ पूज्य है वंदनीय माँ ,
माँ आरती ईश्वर की |
होती है सचमुच में समझो
माँ पूजा परमेश्वर की ||
माँ देवता माँ परमेश्वर -
माँ से बड़ा न कोई भी |
माँ सृष्टि की प्रथम जरूरत,
सृजक -प्रकृति मोहि भी ||
माँ का रक्त रगों में सबके ,
उसे भुलाना मुश्किल है |
रोम रोम में कर्ज़ दूध का ,
उसे चुकाना मुश्किल है ||
माँ के जैसा प्यार जगत में ,
संतति हित में देता कौन |?
माँ की जैसी कृपा दृष्टि सच ,
जीवन भर रखता है कौन ||?
माँ का हृदय हमेशा तत्पर ,
संतति हित में होता है |
माँ से बढ़ हितैषी रिश्ता
जग में ,कौन सा होता है ||
माँ गोद का आनंद लेने ,
ईश्वर भी जन्म लेते |
माँ बाहों में हर्षा हरि भी ,
माँ की वंदना करते ||
*रामगोपाल राही लाखेरी
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