*धर्मेन्द्र बंम
आंधी चले और दीपक भी न बुझे
लहर उठे और वह तिराए भी मुझे
काश कभी ऐसा हो इस जीवन में
गम आये और सुकून भी मिले मुझे
तूफान आए और हवा भी न चले
आग लगे और खुशियाँ भी न जले
काश कभी ऐसा हो इस सावन में
बारिश हो और मौसम भी न बदले
शरारत भी हो और मीत भी हरषे
नफरत भी हो और स्नेह भी बरसे
काश कभी ऐसा हो इस उपवन में
फूल भी खिले और शूल भी हॅसे
तकरार हो और प्यार भी हो जाए
दुश्मन बने और यार भी हो जाए
काश कभी ऐसा हो जो देख रहा हूँ
वह स्वप्न हो और साकार हो जाए ।
*धर्मेन्द्र बंम नागदा जंक्शन, उज्जैन
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