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जब से लगा है लाॅकडाउन



*आशु द्विवेदी


जब से लगा है लाॅकडाउन। 

अपने घर में सब लोग कैद हुए।

नए नए व्यंजनों के देखो सभी शौकिन हुए। 

कोई बनाता रसगुल्ले तो कोई रसमलाई बनाता है। 

फिर अपने परिवार के साथ बैठ चाव से खाता है। 

पर क्या कभी ये सोचा किसी ने। 

इस लाॅकडाउन में देश का मजदूर भूखा रह जाता है। 

दो वक्त की रोटी के लिए वो लाइन लंबी लगाता है। 

फिर भी कहा रोज खाना उसे मिल पाता है। 

कभी कभी खाली हाथ घर वो वापस आता है। 

भूख से तड़प रहे बच्चों की पानी से भूख मिटाता है

कल लाएगा खाना ये झूठी आस उन्हें दिलाता है। 

महामारी क्या मारेगी उसको। 

देख के ऐसी लाचारी अपनी बिन मौत वो मर जाता है।

 

*आशु द्विवेदी, दिल्ली 

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