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हम मजदूर हैं




*डॉ. अनिता जैन 'विपुला'


हम मजदूर हैं मेहनत करना हमारा काम,
आस इतनी ही श्रम का मिल जाये वाजिब दाम।


हाथों के छालों से नये निर्माण हो पाते,
रोज लाते बमुश्किल आटा-दाल वही खाते।


जन्मी सन्ततियां धूल में बड़ी होती रहती,
कुछ साल में मजबूरी मजदूर बनने को कहती।


सुबह कांदा रोटी खाकर शाम का जुगाड़ है,
हो जाये बीमार तो जीवन लगे पहाड़ है।


कितने ही मजदूर दिवस मना लो अर्थपूर्ण नहीं,
जब तक कि उनकी आवश्यकताएँ पिटती रहीं।


काम जिनकी पहचान है क्यों वह उपेक्षित रहे,
रोज रोटी और हर सुविधा भी अपेक्षित रहे।

*डॉ. अनिता जैन 'विपुला', उदयपुर (राज)


 


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