*अशोक 'आनन'
कोरे काग़ज पर लगाएं
बोलो -
कितने और अंगूठे ?
गिरवी
खेल , खिलौने , सपने
गिरवी -
घर की मुस्कानें ।
पीड़ा के
फुटपाथों पर बैठे
आंसू की -
खोल दुकानें ।
भाग्य -
जन्म से रूठा हमसे ।
अपने भी -
अब लगते रूठे ।
खुशियों को तुम
कभी
झोपड़ियां -
अभावों की भी दिखलाना ।
भूख़ों की
इन बस्तियों में
बदहज़मी से -
न जी मिचलाना ।
भूख़ -
हमें यहां रोज़ दिखाती ।
सुबह - शाम -
कई खेल अनूठे ।
*अशोक 'आनन',मक्सी जिला - शाजापुर ( म. प्र.)
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