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गजल नही है



प्रो.रवि नगाइच


फूल कई गुलदान में है, पर कमल नहीं है।
गीत, रुबाई, दोहे हैं पर, ग़ज़ल नहीं है।।


गिरा हुआ है वह जमीन पर, तड़प रहा है।
उठने की कोशिश में है, पर सफल नहीं है।।


जरा सी जिद की खातिर रिश्ता तोड़ रहे हो।
हम झुकने को तैयार, उधर से पहल नहीं हैं।।


जिन गलियों में हम आवारा घूमा करते थे।
तन्हाई के मेले हैं पर, चहल नहीं है।।


बदला है किरदार, नजरिया बदल गया है।
सच्चाई पर फिर भी उनका, अमल नहीं है।। 


चेहरे पर चेहरे कई लेकर, पास मेआया वह।
सारे के सारे बनावटी, असल नहीं है।।
 
अलग एक पहचान बना कर मानेगा वो।
मेरा ही वजूद है उसमें, नकल नहीं है।।


मेरे गीत है तुलसी की चौपाई जैसे।
कहां सहेजें? कैसे? कोई रहल नहीं है।।


प्रो.रवि नगाइच ,उज्जैन


 


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