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एक प्रायोगिक गजल




*कैलाश सोनी सार्थक


क से कठिन हुआ जीवन
ख से खतरा रहता है
ग से गजब बिमारी ये
घ से घातक क्षमता है


च से चीख निकल जाती
छ से छलिया कोरोना
ज से जतन करो दिल से
झ से दुख तब झरता है


ट से टूटे सपने सब
ठ से ठिठक गया हूँ मैं
ड से डरकर भोर हुई
ढ से दिन यों ढलता है


त से सीख तरीका वो
थ से पाए सुख थोड़ा
द से दौर बड़ा कातिल
न से नाटक रचता है


प से पल सुखमय होंगे
फ से फासले तुम रखो
भ से भूल करेगा मानव
म से वो ही मरता है


य से यत्न करो ऐसे
र से राहें मिल जाए
ल से लक्ष्य सिद्ध हों सब
व से हर सुख वरता है

*कैलाश सोनी सार्थक, नागदा, उज्जैन


 


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