लाॅकडाउन 3.0 चल रहा था।सुबह सुबह मैं अपने हाता में टहल रही थी।घर के बाहर कुछ दूरी पर तीन- चार श्रमिक आपस में बतिया रहे थे।सन्नाटे के कारण उनकी आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी।एक कह रहा था "सरकार दारू बंद करके हमें केतना कमजोर कर दी है।अगर आज दारू मिलता रहता तो हमें इ कोरोना से छिपकर नहीं रहना पड़ता।"दूसरा उसकी बातों से सहमति जताते हुए बोला "एकदम सोलह आने साच कह रहे हो भईया।अब घर पर भी हमारी कोई इज्जत नही रही।घर की मेहरारू तो डरती ही नहीं।"
"का करोगे भईया,हम सबका किस्मते खराब है। इ लो खैनी।कोरोना से डरो, कभी मेहरारू से।जिनगी नरक बन गई है ?" तीसरा कह रहा था।उनकी बातों से मुझे महसूस हुआ कि समाज का एक ऐसा वर्ग है जिसे जागरूक करना कितना आवश्यक है।जन जागरूकता के बगैर कोई योजना चाहे शराबबंदी हो या लाॅकडाउन, सफल नहीं हो सकती।इत्तेफाक उसमें एक परिचित भी था। मैं तुरंत उन्हें अपने घर चाय पीने के लिए बुलाई ।चाय के साथ कोरोना संक्रमण के बारे में बताते हुए जब शराब बंदी के फायदे बताई तो वो बहुत खुश हुए।उनकी आंखों में खुशी की चमक देख मेरा मन भी बाग बाग हो गया।
*मीरा सिंह 'मीरा',डुमरांव, जिला- बक्सर, बिहार
इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख
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