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डिजिटल दम्पत्ति काव्य गोष्ठी


देश में लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए साहित्य एवम समाज को समर्पित संस्था "परम्परा" गुरुग्राम द्वारा साहित्य की अविरल धारा बहाने हेतु काव्य गोष्ठियों का अनवरत क्रम ज़ारी है। इसी क्रम में उन दम्पतियों को साथ लेकर, जो दोनों ही साहित्यकार हैं, एक विशेष 'डिजिटल दम्पत्ति काव्य गोष्ठी' का आयोजन शुक्रवार, दिनांक 08 मई'2020 को किया गया। इसमें अपने-अपने घरों से ही मोबाइल के माध्यम से कविताएं सुनाकर, गोष्ठी सफलतापूर्वक आयोजित की गई । गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकारा डॉ स्नेह सुधा नवल जी व उनके पति प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ हरीश नवल जी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं वरिष्ठ सहित्यकारा श्रीमती शशि सहगल जी व उनके पति वरिष्ठ सहित्यकार तथा नाटककार श्री प्रताप सहगल जी। सुप्रसिद्ध ग़ज़लकारा तथा रेडियो उद्घोषिका श्रीमती ममता किरण जी व उनके पति प्रसिद्ध सहित्यकार तथा मीडिया विशेषज्ञ श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई जी ने विशिष्ट अतिथि की भूमिका निभाई।
 गोष्ठी का आयोजन एवम संचालन परम्परा की संयोजिका श्रीमती इन्दु "राज" निगम व उनके पति परम्परा के संस्थापक अध्यक्ष राजेन्द्र निगम "राज" द्वारा किया गया। गोष्ठी में श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे श्री सुशील गुप्ता, श्री सतीश आनंद, सुश्री नीलम वर्मा, सुश्री प्रगति गुप्ता, सुश्री आभा चौधरी तथा विशेष रूप से इटली से सुश्री अन्विता नवल।


इस गोष्ठी में कोरोना वायरस से लड़ने हेतु जागरूकता फैलाने वाली रचनाओं के साथ ही अन्य विषयों पर भी रचनायें प्रस्तुत की गईं। प्रतुत रचनाओं की एक बानगी इस प्रकार है-


डॉ हरीश नवल- 
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"आने लगी है शहर में जुम्बिश तो देखिए
 तम्बू की तनी रस्सियाँ बंदिश तो देखिए"


डॉ स्नेह सुधा नवल-
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"मौसम वृक्षों पर पतझड़ लाते हैं
 पर स्मृतियों के वृक्ष हम सदा हरे ही पाते हैं"


श्री प्रताप सहगल-
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"किलों की दीवारें मजबूत होती हैं
 और किलों की औरतें किलों का सामान"
 
श्रीमती शशि सहगल-
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"लोक का सुख परलोक का सम्भावित सुख
 सभी कुछ पाया मैंने जब बेटा जना मैंने"
 
श्रीमती ममता "किरण"-
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"दर्द भी साथ रख नमी के लिए, बीज बोने हैं कुछ खुशी के लिए
 मेरी दुनिया में है यही क़ाफ़ी, पास जुगनू है रोशनी के लिए"


श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई-
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"उन सारी प्रार्थनाओं का मतलब क्या
जिनके होते हुए भी वही होता है
जिनके न होने के लिए होती हैं प्रार्थनाएं"
 
श्रीमती इन्दु "राज" निगम-
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"मेरे आँसू पी लेते हो चुपके चुपके आकर तुम
 मुझको आस बंधा देते हो चुपके चुपके आकर तुम"


श्री राजेन्द्र निगम "राज"-
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"हो भले जाओ बड़े लेकिन झुके रहना
 बस यही इक बात बच्चों को सिखाते हैं


 


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