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उनकी दुआ



 *आशीष दशोत्तर 


मृत्युंजय महादेव के सामने खड़े होकर 
यीशु का नाम लेती वे महिलाएं 
दुआ कर रही है खुदा से।
एक बड़े अस्पताल के स्वागत कक्ष में 
हर रोज अपने दिन की शुरुआत करती हैं वे इसी तरह
वे दुआ करती हैं इसलिए कि 
सेवा में सत्यता रहे 
कर्म में कहीं कमी न रह जाए 
जो यहां आया है मायूसी लेकर वह मुस्कुराहट के साथ लौटे
कहीं कोई निराश न हो
हर तरफ खुशियां बिखरी रहें
कहीं अधर्म न हो धर्म के नाम पर 
किसी को अभावों में दम न  तोड़ना पड़े ।
उनकी दुआ में कितनी पवित्रता है कि 
उनका स्वर फूटते ही झूमने लगते हैं पेड़
लहराने लगती है लताएं
खुशबू बिखेरने लगते हैं फूल 
मरीजों के साथ  महादेव के मुख पर भी 
आने लगती है मुस्कान 
यीशु और खुदा भी खुश होते होंगे इस समय,
दुनिया की तमाम सभ्यताएं 
साथ देने को आतुर रहती होंगी उनका 
अन्याय और आतंक के खलीफ़ाओं की ज़मीन 
दरकने लगती होंगी इनकी आवाज़ सुनकर 
नई कोपलों सी स्वाभाविकता लिए 
कई कविताएं जन्मना चाहती होंगी इस वक्त
उनके सुर में सुर मिलाना चाहती होंगी समूची मानवता ।
इस वक्त जबकि अस्पताल में मौजूद तमाम लोग
खड़े हो जाते हैं उनके पीछे हाथ जोड़कर 
उनकी दुआ तब्दील हो जाती है 
इंसानियत के राग में।


*आशीष दशोत्तर ,रतलाम 


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