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उड़ती अफवाएं 





*संजय वर्मा 'दॄष्टि'
अफवाएं भी उडती
जैसे जुगनुओं ने मिलकर
जंगल मे आग लगाई
तो कोई उठ रहे कोहरे को
आग से उठा धुंआ बता रहा
तरुणा लिए शाखों पर 
आमों के बोरों के बीच
छुप कर बैठी कोयल
जैसे पुकार कर कह रही हो
बुझा लों उडती अफवाओं की आग
मेरी मिठास सी 

कुहू -कुहू पर ना जाओं

ध्यान दो उडती अफवाओं पर
सच तो ये है की अफवाओं से
उम्मीदों के दीये नहीं जला करते
बल्कि उम्मीदों पर पानी फिर जाता 



*संजय वर्मा 'दॄष्टि',मनावर (धार)




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