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श्रेष्ठ कौन ?



*सरिता सुराणा

 

विश्व भर में फैली कोरोना महामारी के कारण अपने परिवार पर आए संकट से निपटने के लिए आज 'सोप्स एंड सेनिटाइजर्स एसोसिएशन' ने आपातकालीन बैठक का ऑनलाइन आह्वान किया था। एसोसिएशन के अध्यक्ष इस बात से बहुत चिंतित थे कि मनुष्य जाति द्वारा उनकी जाति के साधनों का अंधाधुंध प्रयोग अगर इसी तरह जारी रहा तो पृथ्वी पर विद्यमान अन्य प्रजातियों की तरह उनकी प्रजाति भी विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाएगी। इस बैठक में लाइफबॉय से लेकर रेक्सोना तक और लक्स से लेकर डव तक सभी बाथ सोप, लिक्विड सोप्स, डिटर्जेंट्स और हैंड सेनिटाइजर्स भाग ले रहे थे। वे सब अध्यक्ष की बातों को ध्यान से सुनने की बजाय अपनी-अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने में लगे थे। उन सबमें यह बहस छिड़ गई थी कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है और किसका उपयोग मनुष्य सबसे ज्यादा करता है?

लाइफबॉय का कहना था कि उसका अस्तित्व बहुत पुराने जमाने से है, अतः उसे कोई खतरा नहीं है। इसी तरह लक्स, डव और अन्य तमाम लग्जरी साबुनों का कहना था कि आधुनिक युग के बाथरूम में उनकी ही तूती बोलती है। इतने में ही सभी सेनिटाइजर्स बोल उठे, 'अभी तो सबसे ऊंचा स्थान हमारा ही है, आज छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा आदमी अपनी सुरक्षा के लिए हमें ही दिन भर प्रयोग कर रहा है, अतः हम ही सबसे श्रेष्ठ हैं।' 

इतने में ही रिन डिटर्जेंट और सर्फ एक्सेल का स्वर गूंज उठा, ' हमारे बिना तो आदमी का काम चल ही नहीं सकता। हम ही तो हैं जो उसके वस्त्रों का मैल साफ करते हैं।'

आखिरकार इन सबको चुप कराने के लिए अध्यक्ष को हस्तक्षेप करना पड़ा। बड़े ही दुखद स्वर में उन्होंने अपने सभी साथियों को समझाया कि 'हम यहां अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए नहीं, अपितु हमारे परिवार पर आए संकट से निपटने के लिए कोई रास्ता निकालने के लिए एकत्रित हुए हैं। रही बात श्रेष्ठता की तो हम सबका काम एक ही है और वह है मनुष्य के शरीर और उसके वस्त्रों का मैल साफ करना। हममें से सर्वश्रेष्ठ तो कोई तब होता, जब वो मनुष्य के मन का मैल धो सकता।'

अब चारों तरफ सन्नाटा छा गया था।

*सरिता सुराणा, सिकंदराबाद

 


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