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पर्यावरण संरक्षण  के लिए मनाएं पृथ्वी दिवस








 

*डॉ. राजेश कुमार शर्मा'पुरोहित'

 

प्रतिवर्ष 22 अप्रेल को हम सभी पृथ्वी दिवस मनाते हैं। दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए यह दिवस आयोजित किया जाता है। अर्थ डे मनाने के पीछे खास उद्देश्य यही है । इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड  नेल्सन ने पर्यावरण शिक्षा के रूप में की थी।1970 में इसकी स्थापना हुई। अब संसार के 122 देश हर साल पृथ्वी दिवस मनाते हैं।। यह तारीख उत्तरी गोलार्द्ध में बसंत और दक्षणी गोलार्द्ध में शरद के मौसम में आती है। पृथ्वी दिवस के दिन रात और दिन बराबर होते हैं। प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता अल्बर्ट ने पृथ्वी दिवाद के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी दिन अल्बर्ट का जन्म दिन भी आता है। इन्होंने पर्यावरण चेतना पर खूब काम किया।आज पर्यावरण संकट की चिंता सभी राष्ट्रों को है। बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण से सभी देश चिंतित है।पृथ्वी शब्द व्यापक है इसके अंतर्गत जल वन्यप्राणी हरियाली और इससे जुड़े कारक मौजूद है। धरती को बचाने के लिए हम सबको इन्हें बचाने की जरूरत है।एक राष्ट्रीय स्तर की पहल कर इन्हें बचाना है। जिसके लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है। पृथ्वी दिवस को अमेरिका वृक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। सामाजिक व राजनेतिक स्तर पर जागरूकता की कमी है। कुछ पर्यावरण प्रेमी इसके लिए आगे आते है लेकिन इस हेतु आम जनता को आगे आना होगा।पॉलीथिन के उपयोग पर पाबंदी लगे। कागज़ का इस्तेमाल करें। थैला कपड़े का लेकर बाजार जावें। रिसाइकिल प्रक्रिया को बढ़ावा देने क्योंकि जितना ज्यादा रिसाइकिल होगी उतना ही पृथ्वी का कचरा कम होगा।आज गंगा यमुना नर्मदा सभी पवित्र पूजनीय नदियां कचरे के ढेर सी महानगरों के किनारे दिखाई देती है। इन्हें साफ करने के लिए बड़े बड़े अभियान भी चलाये जा रहे हैं। धुंध में विगत माह में दिल्ली पूरी ढंक चुकी थी। धूल धुंआ यही है बड़े शहरों का सच।यदि पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता गया तो आने वाले समय मे जीव जंतु अंधे हो जाएंगे। लोगो की त्वचा झुलसने लग जायेगी। पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है जो चिंता का विषय है। कटते जंगल से कई वन्य जीवों की प्रजातियां लुप्त हो गई है।आने वाले समय मे बढ़ते प्रदूषण से कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ेगी। समुद्र का जलस्तर बढने से आसपास के इलाके चपेट में आ सकते हैं। असमय ग्लेशियर पिघल रहे है। बाढ़ भूकम्प जलजला सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कारण प्राकृतिक संतुलन नहीं रहना है। आज पृथ्वी बचाना बहुत जरूरी है।

 

*डॉ. राजेश कुमार शर्मा'पुरोहित'

भवानीमंडी

 


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