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मजहब कहां जानता है



*निक्की शर्मा रश्मि


नन्हा बचपन हिंदु, मुसलमान कहां मानता है
कृष्ण,राम या रहीम वो भला कहां जानता है


न जात न पात देखता है बस अच्छा इंसान देखता है
दिल मिल गये जो दोस्ती का फिर कहां ईमान देखता है


मन मिल गयें कृष्ण,रहिम के देखो मजहब कहां मानता है
दिवारें देखो टुटी मजहब की फिर हिंदु,मुसलमान कहां देखता है


कृष्ण ,रहिम संगसंग देखकर बलिहारी सब जाते हैं
फिर मजहब की दिवारें देखो कहां बांध उन्हें पाते हैं


*निक्की शर्मा रश्मि,मुम्बई


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