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मानवता का कर्ज चुकाने आ जाओ



*कैलाश सोनी सार्थक


मानवता का कर्ज चुकाने आ जाओ
दीन दुखी की जान  बचाने आ जाओ


दो रोटी की आग सताती है सबको 
आग यही तुम आज बुझाने आ जाओ


 दुख छ़ाया हर ओर यहाँ के लोगों पर 
किससे बोलूँ हाल बताने आ जाओ


आज वतन से रूठ गयी खुशियाँ सारी
अवसर आया उनको  मनाने आ जाओ


जान गवाँकर सेवा करते जो दर दर
उनकी खातिर शीश झुकाने आ जाओ


अपनेपन का स्वाद बढ़ा है आज यहाँ
गैर न समझो स्वाद चखाने आ जाओ


कोशिश करने से मिटता है अंधियारा  
सच मानो तो दीप जलाने आ जाओ


जीवन है तो सोनी दुनिया है अपनी
देश पुकारे उसको  बचाने आ जाओ

*कैलाश सोनी सार्थक, नागदा ज.


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