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धरती माँ 



*डॉ. अनिता जैन 'विपुला'


एक बार धरती और बादल आपस में बातें कर रहे थे।
"अरे धरती तुम अपने फल-फूल, अन्न, जल, वायु आदि से सारे मानव जगत को सदियों से पालती-पोसती रही हो। फिर भी कोई तुम्हारी कद्र नहीं करता और अपने स्वार्थ के लिए जैसे चाहे वैसे काम निकालते हैं।" भरे बादल ने अफ़सोस के साथ कहा।

"तुम सही कहते हो लगातार बढ़ते औद्योगिकीकरण से ओजोन परत में क्षरण होने, नदियों के सूखने एवं वनों की कटाई होने से लगातार मेरा तापमान बढ़ता जा रहा है।" धरती ने दुःखी होते हुए कहा।

"वही तो वायु और जल प्रदूषण, कच्चा मैला, कीटनाशकों के इस्तेमाल और उत्पादन और प्लास्टिक थैलों के उत्पादन आदि से प्राणी मात्र खतरे में है जिसको बचाने का कोई उपाय भी नहीं है" निराश होते हुए बादल ने कहा। 

"उपाय तो है बादल, जैसे पेड़-पौधे लगाना, वनों की कटाई को रोकना, वायु प्रदूषण को रोकने के लिये वाहनों के इस्तेमाल को कम करना, बिजली के गैर-जरुरी इस्तेमाल को घटाकर ऊर्जा संरक्षण को बढ़ाना-पर इस पर ध्यान ही नहीं देते ये मनुष्य!"धरती ने कहा।

" इस तरफ कोई ध्यान नहीं देता फिर भी तुम सहन किये जा रही हो , अपना कलेजा निकाल कर देती जा रही हो, पता नहीं क्यों" बादल ने निराश होते पूछा ।
"तुम नहीं समझोगे, छलनी-छलनी भी हो जाऊँ तो भी अपने जीवों के मुख पर सुख देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाती हूँ। कतरा-कतरा मेरा इनके लिए दुआ ही करता है" धरती ने सहजता से कहा।
"पर ऐसा क्यों?" 
"माँ जो हूँ। बच्चे कितना भी दिल दुखाये, उनके लिए कभी बद्दुआ नहीं निकल पाती। यही मेरी ताकत है और कमजोरी भी।" धरती ने बादल से कहा।
बादल जान गया कि धरती को अब भी भरोसा है उसकी सन्तान एक दिन उसका अस्तित्व बचा लेगी।

*डॉ. अनिता जैन 'विपुला', उदयपुर


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