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दमघोंटू ही नहीं, जेबकतरा भी है कोरोना



*नवेन्दु उन्मेष

बोतलदास मेरे पास आया और बोला कि यार मैं तो अब तक कोरोना को महज एक बीमारी समझ रहा था लेकिन यह तो जेबकरता भी है। मैंने उससे पूछा कि तुम्हें इसका आभास कैसे हुआ कि कोरोना एक बीमारी नहीं होकर जेबकतरा भी है। उसने कहा मैं एक केंद्रीय कर्मचारी हॅूं और इसकी वजह से मेरे जेबकट गये हैं। उसने आगे कहा मेरे घर में जितने किरायेदार हैं उन्होंने ने मुझे किराया देने से इनकार कर दिया है। बेटा जिस कंपनी में काम करता था। उस कंपनी ने बेटे को नौकरी से निकाल दिया और कहा कि अभी कंपनी की हाल अच्छी नहीं है। सुधार होने पर आपको नौकरी पर रख लिया जायेगा।
मैंने उससे कहा अब तो मैं भी सोचने को बाध्य हो रहा हॅूं कि वास्तव में कोरोना एक बीमारी ही नहीं जेबकतरा भी है। कहावत है कि बाढे़ पूत पिता के घर में। कोरोना चीन में पैदा हुआ। वहीं पला और बढ़ा। इसके बाद जैसे-जैसे उसके पंजे बड़े हुए उसने पूंजीवादी देशों की ओर रुख किया। क्योंकि जब आदमी सामर्थ हो जाता है तो पूंजीवादी देशों की ओर बढ़ता है। इसलिए वह सबसे पहले स्पेन, इटली और अमेरिका आदि देशों की ओर रुख किया। वहां के लोगों की जेब खाली कराने के बाद हमारे देश में भी आ गया। बोतलदास ने कहा कि यहीं कारण है कि हमारे देश के लोग भी अब घर बैठे-बैठे अपनी जेबें खाली कर रहे हैं। लोग बैंकोें में जमा पूंजी निकाल कर खाने को मजबूर हैं। कुछ लोग तो सरकारी सहायता पर पेट भरने को मजबूर हो गये हैं। इससे जाहिर होता है कि कोरोना ने लोगों को बेरोजगार करने के साथ-साथ भीख मंगा भी बना दिया है। यहां तक कि कोरोना की चपेट में आकर फैंक्लिन टेंपलटन नामक म्यूचुअल फंड के 28 हजार करोड़ रुपये भी अटक गये हैं। मैंने उसकी बातों पर हामी भरते हुए कहा कि कोरोना ने हमारे देश के होटल, पर्यटन, सहित अन्य उद्योगों के भी जेबकतर दिये हैं। यहां तक कि आंख, कान, नाक, कैंसर, दिल के अस्पताल खोलने वाले लोग भी रो रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर उन्हें पता होता कि कोरोना का कारोबार इतना बड़ा होता तो वे इन बीमारियों की अस्पताल खोलने की अपेक्षा कोरोना अस्पताल ही नहीं खोल कर बैठ जाते। इस पर उसने कहा कि चीन को पहले ही पता होना चाहिए था कि जिस पूत को उसने जन्म दिया है वह अपराधी है या सज्जन। अगर उसे लग रहा था कि यह अपराधी है तो उसको वहीं सजा दी जानी चाहिए थी। लेकिन उसने तो उसे दुनिया के देशों में अपराध करने के लिए उतार दिया। लाखों लोगों की कत्ल करने के बाद यह जेब भी कतरता जा रहा है। यहां तक कि कुछ साइबर अपराण्धियों के साथ मिली भगत करके लोगों को फोन भी कराता है। साइबर अपराधी विभिन्न प्रकार की सहायता मुहैया कराने के नाम पर लोगों के बैंक बैलेंस भी खाली करने में लगे हैं।
मेरी बातों को सुनकर वह सिर हिलाता रहा है। अंत में मैने उसे सात्वना देते हुए कहा दुनिया में कोई भी आततायी बचा नहीं हैं। कोरोना भी आतंक फैला कर एक दिन दुनिया से चला जायेगा। तब तक तुम्हें हिम्मत तो रखनी ही पड़ेगी। अगर इस बार तुम्हें महंगाई भत्ता नहीं मिला तो अगली बाद अवश्य मिल जायेगा। यह कहकर मैंने बोतलदास को बिदा कर दिया। लेकिन जाते वक्त भी वह अपनी जेब टटोल रहा था और कह रहा था लगता है मेरी जेब में भी कोरोना आ बैठा है।

*नवेन्दु उन्मेष,रांची


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