*आशु द्विवेदी
बढ़ रहा बहुत अब पाप धरा पर।
प्रभु इसे मिटाने आ जाओ ।
हर रोज हो रहा नारी का हरण।
प्रभु नारी की लाज बचाने आ जाओ ।
भाई का बेरी है भाई।
बुढ़ी माँ का शत्रु बना बेटा।
पत्नी को छलता पति यहाँ।
ना है पत्नी अब कोई पतिव्रता।
जन जन के भीतर है रावण।
ना रहीं किसी में मानवता।
कलयुग के रावण का।
प्रभु संहार करने आ जाओ।
भूल रहे सब अपनी मर्यादा
सब को मर्यादा का पाठ पढ़ाने।
लखन सिया संग हे मर्यादापुरुषोत्तम राम ।
तुम फिर से पृथ्वी पर आ जाओ।
*आशु द्विवेदी, दिल्ली
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