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निर्भया को न्याय मिला




*अजय कुमार व्दिवेदी

19 मार्च की रात में मेरी आँखों से नींद जैसे खो सी गई। मेरी नजरें अपने घर में लगे टीवी पर जा टिकी। उस वक्त रात्री के 10 बजे थे। मानों कोई भूचाल आया हो कहीं कुछ बहुत बड़ी अनहोनी हुई हो। जिसके बारे में जानने के लिए मैं टीवी पर नजरें गड़ा कर बैठ गया। मेरे साथ साथ मेरे पूरे परिवार की नजरें टीवी पर टिकी थी। हर कोई यह जानना चाहता था कि अब क्या होगा। आखिर ऐसा क्या हुआ था 19 मार्च रात्री 10 बजे जिसकी वजह से मेरी और मेरे परिवार की आँखों में नींद नहीं आ रही थी। मैं रोज की तरह सुबह-सुबह अपने घर से दफ्तर के लिए निकला। दफ्तर गया शाम तक दफ्तर में रहा रात्री में 8 बजे हमारे प्रधानमंत्री जी टीवी के माध्यम से जनता के साथ जुड़े और कोरोना से बचने के लिए उन्होंने जनता कर्फ्यू का आग्रह किया। और भी बहुत सी बातें उन्होंने कहीं जो मुझे भी अच्छी लगी। फिर क्या था मैंने बिना समय गवाएं फेसबुक के माध्यम से जनता कर्फ्यू का समर्थन किया और अपने मित्रों से आग्रह किया कि वो भी जनता कर्फ्यू को साकार बनाने में देश का साथ दें। ये सब करते कराते रात्री के 9 बज चुकें थे। मैं और मेरे एक सहकर्मी दफ्तर से अपने अपने घर के लिए रवाना हुए। मेरे घर और दफ्तर के बीच तकरीबन 30 से 40 किलोमीटर की दूरी है। इसलिए मुझे अपने घर पहुचने में तकरीबन 10:30 या 11:45 का समय हो रहा होगा। मेरा पूरा परिवार टीवी के आगे बैठा हुआ टीवी देख रहा था। मैं सीधा अपने कमरे में गया और कपड़े बदलते हुए पत्नी से पूछा कि ऐसा क्या आ रहा है टीवी में जिसे आप सभी इतने ध्यान से देख रहे हों। मेरी पत्नी ने जबाब दिया। निर्भया केश के दोषियों के वकील ने हाई कोर्ट में अर्जी लगाई है। जिसपर अभी कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हम सभी यही देख रहे हैं कि कहीं फिर से फांसी पर रोक तो नहीं लग जाएगी। यह सुनकर मुझे दोषियों के वकील पर बहुत गुस्सा आया। और मैं भी टीवी के सामने जाकर न्यायालय का फैसला सुनने के लिए बैठ गया। जैसे जैसे समय बढ़ता गया वैसे वैसे उम्मीद बढ़ती गई। और रात्री के 12 बजे तक बहस चलने के बाद न्यायालय ने दोषियों की अर्जी खारिज कर। लेकिन दोषियों का वकील कहाँ मानने वाला था। उसने रात में ही उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा दिया। उस समय सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि भारत का प्रत्येक व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं फिर से दोषियों की सजा तो नहीं टल जाएगी। कहीं ऐसा तो नहीं इस कानूनी दाव पेच के चलते दोषियों को फांसी की सजा ही न हो। बस इसी उहापोह में पूरी रात नींद नहीं आई। बार बार निर्भया की माता जी का चेहरा आँखों के सामने आ जाता था। मैं निर्भया को नहीं जानता था। निर्भया से मेरा कोई रिश्ता नहीं था। फिर भी मुझे निर्भया अपनी सी लगती थी। उसका दर्द मुझे अपना दर्द लगता था। पिछले 7 वर्षों में न जाने कितनी बार मैंने भारत के कानून व्यवस्था पर उंगली उठाई थी। भले निर्भया से मेरा करीब का या दूर का कोई रिश्ता न रहा हो। पर निर्भया मुझे अपनी बेटी नजर आती थी। निर्भया में मुझे अपनी बहन नजर आती थी। मुझे ही क्यूँ मेरे जैसे प्रत्येक भारतीय को निर्भया में अपनी बेटी और बहन नजर आती थी। आज 20 मार्च है आज सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर दोषियों को फांसी दे दी गई। जैसे ही यह खबर आई मैं खुशी से झूम उठा। मैं ही क्यों मैंने टीवी पर देखा मेरे जैसे करोड़ों भारतीय खुशी मना रहे थे। 7 वर्ष लग गए निर्भया को न्याय मिलने में। देर तो हुई पर फिर भी आज मैं बहुत खुश हूँ। आज मुझे लगता है कि अब भारत की हर बेटी को इंसाफ मिलेगा। क्योंकि 7 वर्ष बाद सही आज निर्भया को इंसाफ मिला।

 

*अजय कुमार व्दिवेदी

 दिल्ली 

 


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