*हमीद कानपुरी
किस तरह हो पुर भला।
जो हुई पैदा खला।
आपका जाना हमीद,
इक बड़ा है मसअला।
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साथ सच के सदा खड़े रहना।
झूठ को सच नहीं कभी कहना।
सच को ज़ेवर बना बना पहनो,
इससे बेहतर नहीं कोई गहना।
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एक से एक हैं जब यहाँ हस्तियां।
डूबती क्यूँ भला फिर यहाँ कश्तियां।
आम जनता सिसकती फिरे चार सू,
काटते फिर रहे रहनुमा मस्तियां।
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एक अम्बार सा है लगा हर तरफ।
झूठ ही झूठ छाया हुआ हर तरफ।
सत्य हरगिज़ कहीं भी मिला ही नहीं,
सत्य को खूब ढूंढा गया हर तरफ।
*हमीद कानपुरी,कानपुर
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