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छुप गया बसंत















*कुसुम सोगानी


दिल खोजता ,शहर में
महका बसंत आगमन
आभास भी नहीं होता
कोयल ,कुहु का गायन
माँ शारदा की स्तुति
वीणा झंकार वादन
ठहरी हुई सी लगती
सुरभित मलय पवन
अट्टालिका हैं ऊँची
उजाला हीथाम लेती
जैसे नगर में घूँघट
ओढ़ लेती ज्यों बसंती
शहरी लगा है ढूँढने
पत्तों का पीला पन
दिखते नहीं सुदूर तक
बौर आम्र के सघन वन
दिखती नहीं ललनायें
केशरिया सा बदन
लहराती केशराशि
काजल से भरे नयन
प्रिय की मिलन घड़ी का ,

अप्रतीक्षित सा चलन
ले चल मुझे मेरे मन
जंहा होता बसंत ,आगमन


*कुसुम सोगानी, इंदौर


 














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