*संजय वर्मा 'दॄष्टि '
कलयुग है कलयुग
बलात्कारी
एक नहीं हर जगह
दिखाई देने लगे
खूनी खेल, बलात्कार ,
पाखंड ,दबाव डालना
आदि क्रियाएं
विश्वास को भी पीछे
छोड़ती दिखाई देने लगी
आकाशवाणी मौन
सब बने हो जैसे धृतराष्ट्र
जवाब नहीं पता किसी को
जैसे इंसान को सॉँप सूंघ गया
आवाज उठाने की
हिम्मत होगई हो परास्त
शर्मो हया रास्ता भूल गई
बलात्कारी का अंत
सिर्फ फाँसी /एनकाउंटर से ही सम्भव
इनका इलाज
कानून के तरकश में न्याय के तीर ने
कर डाला
जो उनको मानते /चाहते अब वो ही
उनसे मुँह छुपाने लगे
कतारे लगी जेलों में
उनकी अशोभनीय हरकतों से
आज के बलात्कारियों ने
आस्था के साथ खिलवाड़ करके
मासूमों का हरण करके
कई चीखों को दफ़न कर दिया
आज के इन बलात्कारियो की
घिनौनी हरकतों को
देख थू- थू कर रही दुनिया
आवाज उठाने वालों और न्याय ने मिलकर
किया शंखनाद
उखाड दी इनकी जड़
गर्व है हिंदुस्तान के न्याय पर हमें
और ख़ुशी आज के बलात्कारियों के अंत की
मगर चिंता ?
अब न हो कोई
आज के बलात्कारियों जैसा
पैदा इस धरा पर
*संजय वर्मा 'दॄष्टि '
मनावर जिला धार
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