*अशोक 'आनन '
पीत - पर्ण - से आज पड़े -
भावों के अनुप्रास ।
ऐसे में अब कैसे आए -
पदमाकर का मधुमास ?
जंगल सारे कट गए ।
पेड़ पथ से हट गए ।
घनी छांव के शामियाने -
रूमाल में अब सिमट गए -
चारों तरफ अब पसर गए -
धूप के आवास ।
कलियां आंखें खोल सकीं न ।
भंवरों से कुछ बोल सकीं न।
लपटों में फूलों को घिरा देख -
तितलियां उन पर डोल सकीं न ।
गुलशन ही अब रोज़ करें -
बहारों की अरदास ।
भाव हृदय में आएं न ।
पदमावत लिखे जाएं न।
गीतों की। कोयल मौन। है -
कुहू - कुहू अब सुनाए न ।
पतझड़ ही अब दे रहे -
मधुमास को वनवास ।
*अशोक 'आनन '
मक्सी -जिला - शाजापुर ( म. प्र.)
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