*प्रो.शरद नारायण खरे
चाहत लेकर चाय की,जगता हूं मैं भोर ।
मिल पाये यदि चाय ना,मैं कर देता शोर ।।
जीवन की संजीवनी,चाय लगे वरदान ।
चाय मिले तो ज़िन्दगी,लगती है आसान ।।
चाय बिना कुछ भी नहीं,चाय बिना सुनसान ।
चाय मिले तो ठंड में,बच पाती है जान ।।
चाय बिना आनंद ना,चाय बिना ना चैन ।
गर्म पेय को खोजते,रहते हरदम नैन ।।
चाय-चाह जो भी करे,वह हो जाता दिव्य ।
चाय चाय की चाहतें,बहुत हो रहीं श्रव्य ।।
चायपान करके बना,'शरद' बहुत बलवान ।
चाय के कारण ही बना,बंदा अति गुणवान ।।
चाय दुकानें,केतली,ठिलिया औ' स्टाल ।
शौक़ीनों की भीड़ नित,करती बहुत कमाल ।।
नहीं मिले भोजन मगर,हरदम पाऊं चाय ।
ख़ूब पियो सब चाय को,यही 'शरद' की राय ।।
चाय बहुत ही श्रेष्ठ है,यह है महती चीज़ ।
तय है यह, यदि चाय ना,तो होगी ही खीज ।।
चाय नहीं होती अगर,हो जाता सब सून ।
ढाती सर्दी नित कहर,होकर तीखी दून ।।
*प्रो.शरद नारायण खरे
विभागाध्यक्ष इतिहास
शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
मंडला (मप्र)-481661
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