Subscribe Us

मोहब्बत को माना है गर बन्दगी



*बलजीत सिंह बेनाम*


मोहब्बत को माना है गर बन्दगी
अँधेरो में मिल जाएगी रोशनी


तुम्हे पा लिया और क्या चाहिए
तुम्ही पहली ख़्वाहिश थी तुम आख़िरी


अजब मसअला है किसी क़तरे से
समन्दर बुझाता है गर तिश्नगी


हुआ क्या ग़मो से ज़रा सामना
बहाने लगे आँसुओं की नदी


कभी दुश्मनों को किया है ख़फ़ा
कभी दुश्मनों से है की दोस्ती


 

*बलजीत सिंह बेनाम
हाँसी:125033
मोबाईल:9996266210

अब नये रूप में वेब संस्करण  शाश्वत सृजन देखे

 









शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ