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जब गंगोत्री ही अपवित्र हैं तो गंगा कहाँ तक पवित्र होगी







 

*डॉ अरविन्द जैन*

आजकल बलात्कार के साथ हिंसा  ,चोरी, डैकेती ,वैश्यावृत्ति आदि पाप या अपराध बहुलता से हो रहे हैं ,और अपराधियों को आजकल कोई भय नहीं हैं ,जबकि सी सी टी वी ,तकनीकी की बहुलता होने से शीघ्र पकडे भी जाते हैं उसके बाद भी अपराधों की कमी न होना ,यह एक यक्ष्य प्रश्न हमारे समाज में हैं .क्या हमारे देश का कानून लचीला हैं ,उसमे युगानुसार परिवर्तन और परिवर्धन की आवश्यकता नहीं हैं ?या ऐसा तो नहीं हमारे देश की संसद और विधान सभा  में निर्वाचित स्वयं इन अपराधों के बावजूद सम्मान पा रहे हैं .इसका मतलब यह हुआ की जब गंगोत्री ही अपवित्र हो रही हैं तो गंगा कहाँ तक पवित्र होंगी .
यह एक चिंतन का प्रश्न हैं की क्यों ये अपराध हो रहे हैं ?इसके मूल में बेरोजगारी ,महगाई ,नशा व्यसन ,परिवेश दूषित होना जैसे पहले फिल्मों को ,उसके बाद टी वी सेरिअल्स को और अब मोबाइल संस्कृति को आरोपित करना ,ये कितना सच हैं इसका विश्लेषण करना अलग बात हैं पर घटनाएं  निरंतर बढ़ रही हैं .और ये अब कम होने वाली नहीं हैं ,उसका कारण भयमुक्त समाज और कठोर दंड का न होना या शीघ्र दंड न मिलना ,न्यायिक प्रक्रिया इतनी जटिल की अपराधी को नैसर्गिक न्याय हेतु सुसंगत अवसर देना ,उदहारण के लिए निर्भया काण्ड के अपराधियों का अपराध सिद्ध होने के बाद आज भी वे दंड से दूर हैं ,सरकार उनका पालन पोषण करती हैं और यह न्याय व्यवस्था भी हैं .क्या उनकी दया याचिका के लिए या दंड देने के लिए घटना की तुलना में कितना अधिक समय लग रहा हैं ,ऐसा क्यों ? एक बात और समझ में आ रही हैं की बेरोजगारी और महंगाई के कारण अब अपराधी अपराध कर सरकारी सम्पत्ति बनकर जेलों में सुरक्षित हो जाता हैं जहाँ सर्कार की जिम्मेदारी होती हैं उसके भरण पोषण ,रखरखाव की .और जेलों से सुरक्षित अन्य जगह नहीं हैं और कोई दुर्घटना हुई तो मानवाधिकार का डंडा चलने लगता हैं .
ऐसा सुनने में आया हैं की देश में जल्लादों की कमी होने से फांसी देने में कठनाइयां हैं ,ठीक भी हैं ,पर मौत से बड़ी सजा तो नहीं हो सकती हैं न ,जब अपराधियों को उससे डर नहीं लग रहा हैं इसका मतलब अपराधियों का कलेजा बहुत मजबूत होता हैं।
वर्त्तमान में जो अपराधों की संख्या में वृद्धि ,अनेकों प्रकार के अपराध और उनके करने ढंग बहुत चिंतनीय विषय हैं ,अकल्पनीय तरीकों को अपनाना .इसका हल मात्र यदि अपराध की पुष्टि होती हैं तो अपराधियों को भी त्वरित दंड देना चाहिए जैसे उन्होंने अपराध के लिए कोई समय नहीं लिया ,न कोई समय निश्चित किया और न कोई मुहूर्त देखा ,और उसके क्या दुष्परिणाम पीड़ित को होंगे और इसका हश्र उनके साथ कैसा होगा .तब न्याय व्यवस्था क्यों इतना विचार करती हैं .?
समाज में जागरूकता के बावजूद भी अपराधियों को कोई भय नहीं हैं ,खासतौर पर बलात्कार का मामला इतना सामान्य होने लगा की अब तो एक माह से लेकर कोई भी उम्र सुरक्षित नहीं हैं ,इसको वहशीपना कहना उचित होगा या बीमारियां .बात एक पक्षीय नहीं हैं ,किसी किसी  प्रकरण में पीड़ित भी इसमें भागीदार होते हैं .आज सामाजिक मर्यादाएं तार तार हो रही हैं पर इनका उदगम फिल्म ,टी वी ,साहित्य मोबाइल के साथ दूषित मानसिकता हैं .
इन बुराइयों के लिए व्यापक चिंतन मनन की जरुरत हैं और सबसे पहले बचाव ही इलाज़ हैं ,सुरक्षा में ही जीवन हैं ,देखा  देखी करने से हम को ही नुक्सान होता हैं .इसीलिए जितने भी सुरक्षा कवच हों उन्हें अपनाये .और अपराधियों के प्रति सरकार को निर्मम होना चाहिए .दंड व्यवस्था शीघ्र हो ,बिलम्व से न्याय भी अन्याय लगने लगता हैं .और सबसे पहले निर्वाचित नेताओं का बहिष्कार होना चाहिए और यदि वे अपराधी सिद्ध हो चुके हो तो उन्हें जेल में होना चाहिए.तभी कुछ संभावना दिखाई देगी ।


*डॉ अरविन्द प्रेमचंद जैन,संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू, नियर डी मार्ट,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026  मोबाइल 09425006753



 



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