Subscribe Us

बन चंडी बन फिर कालिका



*माया मालवेन्द्र बदेका*

ले एक अवतार फिर तू नारी ,ले एक अवतार।

बन चंडी बन फिर कालिका ,फिर से भर हुंकार।

 

अब रक्तबीज के टुकड़े ना करना, लहू से और फैलेंगे।

बढ़ते जायेंगे यह पापी, अस्मत से फिर यह खेलेंगे।

अरे लगा आग इनकी लंका में ,बन जा फिर अंगार।

 

ले एक अवतार फिर तू नारी ,ले एक अवतार।

बन चंडी बन फिर कालिका ,फिर से भर हुंकार।

 

आज अगर इनको छोड़ा, कल तुझे नहीं छोड़ेंगे।

तेरा भरोसा और विश्वास ,यह कल फिर तोड़ेंगे।

मरघट में जला इन्हें गाड़ कब्र में ,कोड़े लगा हजार।

 

ले एक अवतार फिर तू नारी, ले एक अवतार।

बन चंडी बन फिर कालिका, फिर से भर हुंकार।

 

*माया मालवेन्द्र बदेका, उज्जैन

 

अब नये रूप में वेब संस्करण  शाश्वत सृजन देखे

 









शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ