मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन ग्वालियर इकाई ने मिर्ज़ा ग़ालिब की जयंती मनाई
ग्वालियर। मिर्जा गालिब ने अपनी शायरी से न केवल लोगों का मनोरंजन किया बल्कि समाज को भाईचारा और सांप्रदायिक एकता का संदेश भी दिया। उनकी शायरी में इंसान और इंसानियत के साथ जीवन दर्शन मिलता है। गालिब न सिर्फ उर्दू बल्कि भारतीय साहित्य के चंद बड़े शायरों में शुमार हैं। गालिब की शायरी हर दौर में प्रासंगिक है, हमें मिर्जा गालिब पर गर्व करना चाहिए। इंसान की हैसियत से जुड़ा उनका एक शेर देखें-'ए खुदा तेरी जात से तो सिर्फ इक ईमान का शोला रोशन है लेकिन पूरी दुनिया में रौनके इंसान के दम पर है'। उक्त वक्तव्य आयोजन में शामिल साहित्यकारों ने दिया। इस दौरान हिंदी साहित्य सम्मेलन ग्वालियर इकाई के अध्यक्ष माता प्रसाद शुक्ल ने कहा कि ग़ालिब साहब का ग्वालियर से रिश्ता रहा है। उपनगरीय ग्वालियर के नूरगंज बस्ती में किला की तलहटी के पास गमगीन ग्वालियरी रहते थे, वे हज़रत ग्वालियर के नाम से भी प्रसिद्ध थे और ग़ालिब साहब के दोस्त हुआ करते थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉक्टर संजय स्वर्णकार और कहानीकार ए असफल ने मिर्ज़ा ग़ालिब पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी मुख्य रूप से इस ज़िंदगी की नश्वरता दार्शनिक पसंद पर केंद्रित है लेकिन इसमें अध्यात्म का एक गहरा और सूफ़ियाना रंग भी मौजूद है। इसके साथ ही ग़ालिब किसी सख्त संप्रदाय या रस्मी इबादत के पाबंद नहीं थे।आयोजन में डॉक्टर सुरेश सम्राट , राणा जेबा, मनोज भटेले, डॉ एन एन लाहा, राज नारायण दीक्षित,बच्चन बिहारी,राम अवध विश्वकर्मा, डॉ दीप्ति गौड, शिव मंगल सिंह, आमिल खान,धर्मेंद्र व्यास,मुकेश भटेले, रोशन मनीष, नासिर खान समेत बड़ी संख्या में साहित्य रसिक मौजूद रहे।
आम जीवन व समाज से जुड़ी है गालिब की शायरी
आयोजन में वक्ताओं ने कहा कि है कि गालिब की शायरी आम जीवन और समाज से जुड़ी है। गालिब और तुलसी हमारे समय और समाज को समझने की दो आंखें हैं। कहा कि जैसे हर मौके पर गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई उदाहरण बन हमारे सामने खड़ी हो जाती है उसी तरह गालिब के शेर भी हैं जो जीवन के हर पहलू को छूते हैं। उनके शेर मुहावरे बन गए हैं जो जीवन की हर मुश्किल में सीख देते हैं।
ग़ालिब के शेर साझी विरासत में पुल का काम करते हैं
मिर्जा गालिब के शेर हमारी सांझी विरासत में एक पुल का काम करते हैं। उनकी तमाम रचनाएं बहुत मशहूर हुईं जिनमें 'इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के' तथा 'हमको है उनसे वफा की उम्मीद जो नहीं जानते वफा क्या है' आदि शामिल हैं।


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