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वो बचपन वो नादानियाँ 



*राजीव डोगरा*


वो बचपन वो नादानियाँ 
न जाने
अब कहाँ चली गई,
घूमता फिरता था जहाँ
वो हसीन वादियाँ भी
न जाने
अब कहाँ चली गई।
बैठ जिस नदी किनारे
करता था अठखेलियां 
वो नदी भी न जाने 
अब कहाँ चली गई,
वो आम का वृक्ष
बैठ जिसके नीचे 
देखता था अंबर और अवनि को
वो वृक्ष भी न जाने
अब कहाँ चले गए।
एक सखी थी
बड़ी प्यार सी
एक सखा था 
बड़ा नटखट सा
मिल तीनों करते थे।
बड़ा धूम धड़ाक
पर न जाने 
समय के पांव के संग
अब वो कहाँ चले गए
न अब बचपन रहा
न अब नादानियाँ रही
दोनों मिल अब 
न जाने
कहाँ दूर चले गए।


*राजीव डोगरा,ठाकुरद्वारा मो.9876777233










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