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तंग,शहर की लड़की



*शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'*


 


सरकारी नल पर धोती है,


तन के मैले कपड़े,


तंग, शहर की लड़की.


 


पढ़ने के दिन खाली बैठी,


टूटा बिजली खंभा,,


मिले दुखों को मार रही है,


वह साहस का रंभा,


व्यंग्य चुटीले डंक मारते,


अन्तस् फैले लफड़े,


पंग, शहर की लड़की.


 


रोटी का है गरम तवा भी,


जब तब होता ठंडा,


जब देखो तब सींझ न पाता,


मोटा चावल खंडा,


निपट गरीबी भाग लिखी है,


खाली थैले पकड़े,


भंग, शहर की लड़की.


 


उभरे कई सवालों के सँग,


घेरे में है जीती,


यह अच्छा है, संकल्पक है,


जहर नहीं है पीती,


आये हर संकट से जूझी,


रह रह झेले तगड़े,


जंग, शहर की लड़की.


 


*शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'


'शिवाभा' ए-२३३ गंगानगर 


मेरठ-२५०००१ उ.प्र.


दूरभाष ९४१२२१२२५५ 


 





















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