*दर्शना भावसार*
हालात सियासत दारों के, कुछ ठीक नही लगते,
शायद इन्हें सुकूं के पैगाम,अच्छे नही लगते।
नज़रों में बहशियाना,आँखों में लकीर खून की,
होंगे बडे माना,पर ये जात से फ़रिश्ते तो नही लगते।।
चमन को बचा पाये,ये वो माली नही लगते,
हालात सियासत दारों के कुछ ठीक नही लगते।।।
बस्ती है सुनसान, खौफ पसरा पड़ा है,
देखो हर शख्स यहाँ खून का प्यासा खडा है।।।।
गर इसी को आजादी कहते, तो हो मुबारक तुमको,
मेरा तो सारा मुल्क, खानों-खानों में बंटा है।।।।।
होली जज्बातों की खेलते सिंहासन वालों, तुम नहीं थकते,
शायद इन्हें सुकूं के पैगाम,अच्छे नही लगते।
*दर्शना भावसार, गंजबासोदा
हालात सियासत दारों के, कुछ ठीक नही लगते,
शायद इन्हें सुकूं के पैगाम,अच्छे नही लगते।
नज़रों में बहशियाना,आँखों में लकीर खून की,
होंगे बडे माना,पर ये जात से फ़रिश्ते तो नही लगते।।
चमन को बचा पाये,ये वो माली नही लगते,
हालात सियासत दारों के कुछ ठीक नही लगते।।।
बस्ती है सुनसान, खौफ पसरा पड़ा है,
देखो हर शख्स यहाँ खून का प्यासा खडा है।।।।
गर इसी को आजादी कहते, तो हो मुबारक तुमको,
मेरा तो सारा मुल्क, खानों-खानों में बंटा है।।।।।
होली जज्बातों की खेलते सिंहासन वालों, तुम नहीं थकते,
शायद इन्हें सुकूं के पैगाम,अच्छे नही लगते।
*दर्शना भावसार, गंजबासोदा
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ