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रणबांकुरे









*माया मालवेन्द्र बदेका*

जंजीरों में बंधकर भी वह ,जी भर कर मुस्काये थे।

देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे।

 

मां,बहन, बेटी उनसे, बिछुड़ने की नही पीर थी।

वह भी रांझा  किसी के,उनकी भी कोई हीर थी।

पर देशप्रेम की बंधी ,उनके मन में कड़ी जंजीर थी।

ऐसे वीर सपूत मीटे देश पर, वीरांगना के जाये थे।

जंजीरों में बंधकर भी वह ,जी भर कर मुस्काये थे।

देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे।

 

दीपावली के दीप जले,होली की कहीं अबीर थी।

वीर बांकुरे मिले देश को,भारत की तकदीर थी।

आजाद देश की शान बने वह, ऐसी तस्वीर थी।

हमारे लिए बदन पर उनने, अनगिनत कोड़े खाये थे।

जंजीरों में बंधकर भी वह ,जी भर कर मुस्काये थे।

देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे।

 

*माया मालवेन्द्र बदेका,७४_अलखधाम नगर,उज्जैन (मध्यप्रदेश)










 
























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