*प्रशांत शर्मा*
हूँ आधी नींद में अभी जरा सो तो जाने दो ,
हैं ख्वाब अधूरे अभी जरा पूरे हो तो जाने दो ,
फिर एक बार जमी है मसखरों की महफ़िल
लगेंगे ठहाके जरा दास्ताने-इश्क कहे तो जाने दो
चुभते हैं सन्नाटे अब महफ़िलों में शूल बनकर
चले जाना तुम भी जरा गैरों को चले तो जाने दो
और कौन राह देखता है तुम्हारी इस वीराने में
दे देना तुम भी आवाज जरा आवाज तो आने दो
इस कदर मायूस न हो तू अभी से मेरे दुश्मन
शर्त ये है दुश्मनी की जरा दोस्ती हो तो जाने दो
*प्रशांत शर्मा,चौरई जिला छिंदवाड़ा मो,9993213514
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ