*मीरा सिंह 'मीरा'*
मैंने सुना है
तुममें करिश्माई शक्ति है
मुर्दों में प्राण फूंकते हो
गूंगे की जुबान बनते हो
आज चुप क्यों हो ?
बोलो तो, क्या कहते हैं?
पत्थर पिघलाने वाले
आसमान झुकाने वाले
नामुमकिन नहीं कुछ
तुम जब ठान लेते हो
इतना सब होकर भी
बेजान क्यों लगते हो?
बोलो तो, क्या कहते हो?
अनगाए गीतों को
तुम ही तो गाए थे
दुखों के सहरा में
हंसे थे मुस्कुराए थे
अनकहे अफसाने
दुनिया को सुनाएं थे
दबे कुचलों को
मुख्यधारा में लाए थे
आज तुम विवश
क्यों लगते हो?
बोलो तो, क्या कहते हो?
छेनी हथोड़ा की तरह
औजार बने
तुम्हारे शब्द
बुराई पर चोट
करने के बजाय
प्रेमिका की गजरे के
फूल बनकर रह गए
तालियों के बीच
तुम गुम होकर रह गए
बुझी राख में
चिंगारियां ढूंढने वाले
थके कदमों को
हौसला देने वाले
आत्ममुग्ध होकर
किस ख्याल में डूब गए
खोजी आंखों के सामने
एक कोहिनूर
धूलधूसरित रहा
कितने बेगुनाह
सूली चढ़ते रहे
तुम बुत बने
तकते रह गए
चीखें ना चिल्लाएं
नहीं प्रतिवाद किए
समाज के साथ
यह कैसा न्याय किए?
बोलो तो, क्या कहते हो?
क्या कुछ महसूस सकते हो?
वक्त के साथ
तुम कितना बदल गए
अपनी जिम्मेदारी
अपने दायित्व भूल गए
खामोशी की कीमत
अता कर सकते हो
इतिहास के पन्नों में
काला अध्याय बनना
कुबूल कर सकते हो?
बोलो तो,क्या कहते हो?
*मीरा सिंह" मीरा "डुमराँव ,जिला- बक्सर ,बिहार
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