*वन्दना पुणतांबेकर*
यह कैसा समय का दौर हो चला है।
किसी को किसी की खबर नहीं।
हरकोई बेख़बर हो चला है।
सत्ता के मोह के मोहताज है,सभी यहां।
किसी को किसी की चाह।
हर कोई चाह में दौड़ चला है।
यह कैसा समय का दौर हो चला है।
घर बड़ा है,मकान का दर बड़ा है।
उस घर मे अपनापन कही खो चला है।
प्यार दिखता नही,अब इस दौर में।
दिखावे के आईने में सब मुकम्ल हो चला हैं।
यह कैसा समय का दौर हो चला है।
शानो शौकत के इस दौर में।
हर शख्स रंजिशो की गिरफ्त में खो चला हैं।
नारी बेटियां सम्मान पा रही आज मंचो पर।
अंधेरी गलियों में आबरू की खातिर
आँचल बेआबरू हो चला है।
यह कैसा समय का दौर हो चला है।
ख्वाईशो की चादर ओढ़े
बईमानी का ताज पहने हर कोई बेखबर हो चला है।
रात में फुटपाथों पर सोते
इंसा ठिठुरन से सिमटकर चीर में सो चला है।
यह कैसा समय के दौर हो चला है
*वन्दना पुणतांबेकर,इंदौर मो.9826099662
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