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सुलझाना भी मन के ही वश में (कविता)






*सोनल पंजवानी, इंदौर


यह अर्धनारीश्वर आसमान


इस सृष्टि पर छाया  कुछ ऐसे


आलोक बिखेर रहा है अपना


छिटका दो रंगों में जैसे


 


इक ओर है कोलाहल दिन का 


तो शांत झील सा मन इक ओर


इक ओर ज़माने के संशय तो


इक ओर किलकता घर आंगन


 


जब राग विराग सकल जग में है


मन मे भी तो दोनों समाए


बिखरे जीवन की डोरी (उलझन) को


सुलझाना भी मन के ही वश में ।


*सोनल पंजवानी, 1404, अपोलो डी बी सिटी,निपानिया, इंदौर,मो. 9755544422







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