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सस्ता व शीघ्र न्याय (कविता)



*सुनील कुमार माथुर*









कहते है कि न्याय में विलम्ब 

न्याय का हनन है अतः 

न्याय सस्ता व शीघ्र हो 

तभी तो पीडित को समय पर 

न्याय मिल पायेगा व

पीडित पक्षकार राहत की सांस ले पायेगा 

हम इस लोकतांत्रिक राष्ट्र में 

एक बार अदालत की शरण लेते हैं  तो

पता नहीं कब न्याय मिल पायेगा  ?

इस बात की कोई गारंटी नहीं है 

अगर न्याय मिला भी तो दूसरा पक्ष

आगे की अदालत में जाता है फिर

तारीख पर तारीख चलती ही रहती है 

यही वजह है कि 

आज अदालतों में मुकदमों की

संख्या दिनों दिन बढती ही जा रही हैं 

अगर जनता को 

सस्ता व शीघ्र न्याय देना है तो 

मुकदमे की समय सीमा तय करनी होगी

एक अदालत ने फैसला दे दिया तो

आगे अपील करने की छूट न हो

अगर ऊपरी अदालत ने

नीचली अदालत का फैसला बदल दिया तो

फिर न्याय कहां हुआ  ?

न जाने एक से दूसरी अदालत में जाते जाते

फैसले के इंतजार में 

पीडित कितनी आर्थिक व मानसिक 

वेदना झेलता है यह तो

भुगत भोगी ही जानता है 

अतः न्याय के लिए समय सीमा तय हो व

पीडित , शोषित व उत्पीडित व्यक्ति को

समय पर सस्ता व शीघ्र न्याय मिले

यही समय की पुकार है 

*सुनील कुमार माथुर ,39/4 पी डब्ल्यू डी कालोनी जोधपुर 











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