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फीकी क्यों है दिवाली (कविता)










*विजयलक्ष्मी जांगिड़ विजया*

 







क्या बात है ?इस बार दिवाली फीकी क्यों है?

हम ने एक दुकानदार से पूछा

क्या करें साहब पहले दिवाली पर 

बिकते थे 

अब हर रोज बिकते हैं

हमने कहा समझाओ 

उसने कहा पहले कपड़े अब ज़मीर

 

 

इस बार दिवाली फीकी क्यों है ?

हमने एक ग्राहक से पूछा

उसने उदासी भरे लहज़े में बोला

पहले टेक्स से डरते थे 

अब टेक अस करते हैं

हमने कहा स्पस्ट बताओ

उसने कहा पहले उपहार अब व्यापार

 

 

इस बार दिवाली फीकी क्यों है ?

एक सज सवर करजा रही महिला से पूछा

बोली ,क्या बताये पहले गुल्लके भरते थे 

अब  गुल्लक ही भारी हैं

हमने कहा पहेली क्यों

उसने कहा पहले बचत अब कर्ज़

 

 

इस बार दिवाली फीकी क्यों है?

पटाखों के लिए मिमियाते बच्चे से हमने पूछा

पहले तो जी भर रोया फिर हमको धोया

पहले पापा से डरते थे 

अब आप ही से डरते हैं।

हमने बड़े दुलार से पूछा ये क्या

उसने कहा पहले संस्कार अब सरकार

 

कुछ यूं ही फिर हमने एक पत्रकार से पूछ लिया

भई इस बार दिवाली फीकी क्यों है?

पहले तो उसने मीडिया का डर दिखाया

फिर बोला पहले विज्ञापन करते थे 

अब भी वी ज्ञापन करते हैं।

हमने कहा हम निरे बौड़म है नही समझे

उसने कहा पहले खुशिया अब स्वार्थ

 

तभी हमने पास बैठे बुजुर्ग से पूछ लिया

बाबा इस बार दिवाली फीकी क्यों हैं?

उन्होंने दाढ़ी पर हाथ फिराते हुए बोला

पहले समय था अब सब मैं है

 

क्या सच मे दिवाली के मायने बदल गए हैं?

 

*विजयलक्ष्मी जांगिड़ विजया,जयपुर








 













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