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परम्पराओं और संस्कारों का ह्रास (चिंतन)







*श्रीमती सुशीला शर्मा*


भव्य ,विशाल और विलासिता से सजे पंडाल में उड़ने वाला ड्रोन कोने-कोने की तस्वीरें कैप्चर कर सामने लगे बड़े से स्क्रीन में लाइव टेलीकास्ट कर रहा था ।लोगों का पूरा ध्यान मंडप की ओर न हो कर स्क्रीन में अद्भुत सजावट, टेबल में सजे अनगिनत व्यंजन, फास्ट फूड की दुकाने और भड़काऊ डीजे की कानफाडू   धुन में डांसिंग फ्लोर में फूहड़ नृत्य करते  महिला, पुरुष और बच्चों की ओर ही था ।थोड़ी देर बाद ड्रोन  स्टेज की ओर घूमा और "बहारों फूल बरसाओ" की परम्परागत धुन ने डीजे से तेज हुई धड़कनों को नार्मल किया ।वर वधू को उनकी मित्र मंडली पकड़ कर लाई और फिर दोनों पक्षों ने शालीनता को दरकिनार कर लक्ष्मी और विष्णु रूप जोड़े को ऊपर उठाकर जयमाला को मखौल बना डाला ।धीरे-धीरे सभी निमंत्रित लोग ऊपर आए, उपहार दिये, फोटो खिंचवा कर अपनी साक्षी दी और भोजस्थल की ओर चले गए ।अब जाकर उस पूर्व परिचित जोड़ी को विवाह मंडप में लाया गया ।पंडित जी ने आधे-अधूरे मंत्रोच्चार किये और अग्नि के सात चक्कर में सात वचन निभाने का वादा करवा कर दक्षिणाम् समर्पयामि बोला और मुक्ति पाई और आशीर्वाद दिया "आज से आप दोनो पति-पत्नी हैं "।माता-पिता की जिंदगी भर का किया त्याग यूँ दो घंटे में पूरा कर, बेटी विदा तो हो गई पर आगे निभाने वाली जिम्मेदारियाँ छोड़ गई जिनकी भरपाई करते-करते माता-पिता की कमर टूट जाएगी ।   
सवाल ये उठता है कि आज हमारी युवा पीढ़ी विवाह के नीति संस्कारों की महत्ता और महानता के जीवन में प्रभाव को महत्वहीन मानकर भौतिकता का प्रदर्शन अधिक करने में विश्वास रखने लगी है ।दबाव डालकर और ये दलील देकर कि "शादी तो एक ही बार होती है " ,अति मंहगे परिधान, गहने, और दान -दहेज की भौतिक वस्तुओं की मांग करने लगी है ।हमारे भावी कर्णधार समाज की बुराइयों और फिजूलखर्ची को रोकने की बजाय बढ़ावा देती नजर आ रही है जिसके कारण आपसी संबंधों की गहराइयाँ समाप्त होती जा रही है और  वैभवता की चकाचौध में हमारी वैदिक मान्यताएँ लुप्त होती जा रही हैं।पढ़े-लिखे युवाओं ने यदि काबू नहीं किया तो भविष्य में हमारी परम्पराओं और संस्कारों के ह्रास का भुगतान उन्हें ही करना होगा ।


*श्रीमती सुशीला शर्मा,64-65 विवेक विहार,न्यू सांगानेर रोड, सोडाला,जयपुर -302019,मो. 9214056681








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