पांच साल की मेरी बहना ,
बड़ी चुलबुल - चंचल नटखट है ।
नही पढ़ने देती है मुझे चैन से,
सारा दिन शरारत करती है ।
किताबों को मेरी वह तकिया समझकर,
उसपर सर रखकर सो जाती है ।
कलम को मेरी ब्रश समझकर,
अपने अंगों पर चित्र बनाने लगती है
चाचा नेहरू के कोट पर लगे,
लाल गुलाब को,
कभी काला तो कभी नीला बना देती है ।
बापू जी के चिकने सर पर
मेरी काली स्याहीयुक्त कलम से
उनपर बाल उगाने लगती है ।
कभी कभी उनके सफेद चश्मे को
रंगीन बनाने लगती है ।
मेरी कलम और पेन्सिल को ,
हाथ लगाते हीं वो
बड़ी चित्रकार बन जाती है ।
मेरी किताब कोपियों के पास जाते हों
बड़ी विद्वान बन जाती है ।
कभी-कभी टीवी मे नृत्य देखकर,
खुद डिस्को डांसर बन जाती है ।
तिलचट्टे को देखते ही ,
झाडू से मार गिरा देती है ।
घर के बाहर बन्दर को देखते ही
घर के अंदर ही लाठी घुमाने लगती ।
गुस्से से जब मै उसे घूरती
उलटा मुझपे गुर्राने लगती है ।
पांच वर्ष की मेरी चालू बहना
चुलबुल चंचल नटखट है ।
*संचयिता शर्मा,नूनमाटी, गुवाहाटी,आसाम
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