Subscribe Us

नटखट बहना(कविता)









*संचयिता शर्मा*

पांच  साल  की  मेरी  बहना ,
बड़ी  चुलबुल - चंचल  नटखट  है ।
नही  पढ़ने  देती  है  मुझे चैन  से,
सारा  दिन  शरारत  करती है ।
किताबों को मेरी  वह तकिया  समझकर,
उसपर  सर रखकर  सो जाती है ।
कलम को मेरी  ब्रश समझकर,
अपने  अंगों पर  चित्र  बनाने  लगती है
चाचा  नेहरू  के  कोट पर लगे,
लाल गुलाब को,
कभी  काला तो कभी  नीला बना देती है ।
बापू   जी  के  चिकने  सर  पर
मेरी काली  स्याहीयुक्त  कलम से
उनपर  बाल उगाने  लगती  है ।
कभी कभी  उनके सफेद  चश्मे  को
रंगीन  बनाने  लगती  है ।
मेरी  कलम  और  पेन्सिल को ,
हाथ लगाते  हीं वो
बड़ी  चित्रकार  बन जाती  है ।
मेरी  किताब  कोपियों के  पास  जाते हों
बड़ी  विद्वान  बन जाती  है  ।
कभी-कभी  टीवी मे नृत्य  देखकर,
खुद  डिस्को डांसर बन जाती  है ।
तिलचट्टे  को  देखते  ही  ,
झाडू  से मार  गिरा देती है ।
घर  के बाहर  बन्दर  को  देखते  ही
घर  के  अंदर  ही  लाठी घुमाने  लगती ।
गुस्से से जब मै उसे   घूरती
उलटा  मुझपे गुर्राने लगती  है ।
पांच  वर्ष  की  मेरी चालू  बहना
चुलबुल   चंचल  नटखट  है ।



*संचयिता शर्मा,नूनमाटी, गुवाहाटी,आसाम














शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ