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मोबाइल की दुनिया (कविता)






*संजय वर्मा 'दॄष्टि'*


जिंदगी तरसती 
दो पल बातो के लिए


कोई काम की सुध नहीं 
बिना नहाए 
बैठे रहे घंटों तक 


एक जगह 


तारीफो के पूल 
बांधते रहने का 
मानों लिया हो जैसे ठेका


हाजिर हो रहे हो 
जैसे जिन्न पाल लिया हो 
गुड मोर्निग /गुड आफ्टरनून / गुड नाईट 
बोलना अनिवार्य 
नहीं तो दोस्ती टूटी 
ये तो वैसा ही लगता जैसे 
"सांप घर सांप पावणा 
बस जीप की लपलापी"


हकीगत में जब होंगे 
आमने -सामने तो 
प्रत्यक्ष को प्रमाण की 
आवश्यकता न होगी 
इस दुनिया से बाहर की 
दुनिया भी होती  
जिसमे रूबरू से 


मिलता है  सुकून


*संजय वर्मा 'दॄष्टि' 125 शहीद भगतसिंग मार्ग ,मनावर जिला धार  मप्र  मो.9893070756







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