*सविता दास सवि*
पता है
इन दिनों
कुछ लिख
नही पा रही
रूठ गए हैं शायद
ये फूल,पौधे
पहाड़,नदियाँ
धरा, अम्बर
सब
कोई संवाद
नही कर रहा
सब मौन है
और मेरी संवेदनाएँ
उन्हें क्या हुआ
क्यों किसी
पीड़ित या
निरीह के लिए द्रवित
नही हो रही
क्यों भावनाएँ
चूक रही है
उभरते उभरते
दम घुट रहा है
मेरी कलम का
शब्दों की प्रवाहमान
नदी , किसी तटबन्ध
पर थमी सी है
मन कवि है
इसे ये सन्नाटा
स्वीकार नही
शायद कोई
अंदेशा है किसी
प्रचण्ड प्रकाश्य का
ये शांति उसके
पहले की है
ज्यूँ अवनी भी शांत
रहती है
लावा के फूटने से पहले।
*सविता दास सवि,तेज़पुर,असम
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