Subscribe Us

कटघरा (लघुकथा)



*दिलीप भाटिया*
ज्योति बेटी स्नेह। दीपक से तुम्हें मुक्ति मिली। जीवन साथी से सम्बन्ध विच्छेद का निर्णय बहुत कठिन होता है। तुमने कष्टों से मुक्ति पाई। तुम्हारी भविष्य की जीवन यात्रा निष्कन्टक हो बस मैं यही शुभकामना भर करसकता हूँ। तुम्हें अपनी पुत्री के लिए अब दो भूमिकाएँ निभानी होगी। तुम इस कठिन कर्तव्य को निभाने में सक्षम समर्थ हो। बड़ी होने पर शायद तुम्हें वह कटघरे में खड़ी कर अपने पापा के लिए तुमसे प्रश्न कर सकती है। निश्चय ही तुम उसके इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार होगी। दीपक से तलाक के बाद तुमने शेष जीवन के लिए भी सकारात्मक निर्णय सोच रखे होगे। तुम्हारे पापा के सिर पर अब उनके माता पिता की छाया नहीं है। हम सभी के लिए यह एक कटु सत्य है। जीवन के उस मोड़ पर एक नया सन्कट तुम्हारे समक्ष होगा। वर्तमान में तो तुम्हें पीहर की छाया उपलब्ध है। पर बेटी तुम्हें स्वयं को मानसिक रूप से उस परिस्थिति के लिए भी तैयार होना चाहिये। जीवन के अन्धेरो में तुम्हें मुझसे रोशनी की आवश्यकता हो तो निसन्कोच सम्पर्क कर लेना। मेरे जीवन की भी अब शाम है। अस्वस्थ भी रहता हूँ। पर मेरी नैतिक सहायता हमेशा तुम्हारे लिए उपलब्ध रहेगी इतना भरोसा विश्वास रखना। सम्पर्क बनाए रखना एवं समय निकालकर मिलने का भी प्रयास करना। तुम्हारी बेटी को आशीर्वाद एवं तुम्हें  शुभकामना। स्मरण रखना कि सत्य परेशान होसकता है पराजित नहीं। सत्य मार्ग पर चलती रहना बेटी। सस्नेह कैलाश अन्कल।
*दिलीप भाटिया रावतभाटा, राजस्थान मो.9461591498



शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ