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जॉब करने वाली स्त्रियों के फैशन (लेख)










*सुषमा भंडारी*

जॉब,क्या है जॉब ! जॉब परिवार को चलाने के गाड़ी है जिसमें जीवन के सब सपने हैं और इस गाड़ी को पहले घर के मुखिया यानि पुरुष वर्ग चलाता था । तब छोटे छोटे सपने छोटे छोटे खर्च होते थे किन्तु अब इस युग में जहां अबला , सबला बन चुकी हैं, पढ़ाई में अव्वल आ रहीं हैं,वहीं पुरुषों के साथ प्रत्येक क्षेत्र में कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही हैं ।गृहस्थी की गाड़ी चलाने में भी स्त्रियां पुरुषों का भरपूर साथ दे रही हैं।जॉब का सम्बन्ध समाज के प्रत्येक तबके से है। इस को कई हिस्सों में बांटा जा सकता है । 


गरीब वर्ग


यहां स्त्रियाँ घरों में चौका बरतन करती हैं फैक्ट्रियों में काम करती हैं ।अपनी योग्यता अनुरूप कोई न कोई काम ढूंड ही लेती हैं अपने ,अपने बच्चों के , परिवार के सपने पूरा करने की कोशिश करती हैं।यहां स्त्रियां अधिकतर शादीशुदा होती हैं।


मध्यम वर्ग


यहां स्त्रियाँ शादीशुदा व कुंवारी दोनों होती हैं।शादीशुदा वर्तमान संवारने का प्रयास करती हैं और कुंवारी आगामी सपनों को पूरा करने के लिये तत्पर रह्ती हैं। इनको हम कई वर्गों में विभक्त कर सकते हैं।


एक वे जो काफी शिक्षित होती हैं और उंचे पदों पर विराजमान होती हैं जैसे डॉक्टर/ टीचर/बैंक/अन्य अधिकारी वर्ग/पुलिस/सेना या बड़ी बडी मल्टी नेशनल कम्पनी में मनेजर या कोई बडी पोस्ट पर कार्यरत। दूसरी वे जो कुछ कम पढ़ी होती हैं कम्पनी, फैक्ट्री, अस्पताल या किसी प्राईवेट सेक्टर के अतिरिक्त अपना एन जी ओ खोल लेती हैं या व्यवसाय करती हैं तीसरी वे जो और कुछ कम पढ़ी होती हैं किन्तु स्कूल ,अस्पताल, कम्पनी या अन्य किसी सैक्टर में ग्रुप डी का कार्य करती हैं। हाँ तो देखा आपने ! सब कार्यरत महिलायें किसी न किसी रूप में अपने घर की गाड़ी कौ चलाने में मददगार सिद्ध होती हैं । अब बात करते हैं फैशन की । यूं तो वस्त्र व श्रिंगार हर स्त्री को पसन्द भी है और उनका अधिकार भी । इतिहास गवाह है , किन्तु आज इस अत्याधुनिक युग में नया नाम प्रचलित है फैशन, यानि रिवाज । और ये रिवाज सिर्फ कपडों / गहनों तक ही सीमित नहीं रहा खाने, पीने ,चलने ,रहने, बोलने , रिश्तो को निभाने, न निभाने , नये रिश्ते बनाने , सम्मान करने न करने में तक समाहित हो गया है। जिस प्रकार स्त्रियों में जॉब का दायरा भिन्न भिन्न है उसी प्रकार से उनके फैशन भी अलग अलग हैं। प्रत्येक स्त्री के फैशन को सर्वप्रथम उसकी पसन्द फिर उसका परिवार , उसका सामजिक माहौल, उसके संस्कार


व उसकी आकान्क्षाएं प्रभावित करती हैं। जहाँ से चले थे वहीं से शुरु करते हैं सर्वप्रथम बात करते हैं घरों में चौका बर्तन करने वाली स्त्रियाँ अधिकांश उन्ही घरों से मिले वस्त्रों को पहनती हैं


किन्तु ये मेकअप करने में माहिर होती हैं ढेर ढेर चूडियां पहनना , गहरी लिपस्टिक, बिन्दी व लम्बी गहरी मांग। आजकल तो मोबाईल जरूरत के साथ साथ फैशन में आ गया है। यही हाल फैक्ट्रियो मे जाने वाली महिलाओं का है ये एक पर्स भी साथ रखती हैं और कान में लीड क्युकि ये बस या ट्रेन में जाती हैं इनका सफर अच्छा कटता है।


दूसरी होती हैं मिडल क्लास महिलायें यानि मध्यम वर्ग । इनके फैशन होते हैं नये सूट/ साडी/ नये मोबाईल/ गाड़ी मॉल/ सेल में जाना / उच्च आकांक्षायें , आर्थिक रूप से परिवारों ,रिश्तेदारों व दोस्तों से प्रतिस्पर्धा। इस के लिये वे अधिक से अधिक कार्य करती हैं, ओवर टाईम भी करती हैं यहां तक कि कई बार राह भी भटक जाती हैं।संस्कार मूल्यों को भूल जाती हैं पाश्चात्य सभ्यता को उच्च श्रेणी का दर्जा देती हैं पश्चिमी डिजाइन के वस्त्रों को पहनना अँग्रेजी भाषा बोलना फैशन का प्रथम बिन्दु है। ये लक्षण प्राईवेट कम्पनी अथवा सेक्टर में अधिक मिलते है। मध्यम वर्ग की महिलाओं के वस्त्रों की पसन्द कुछ अलग किस्म की होती है । ये मँहगे से महंगे वस्त्र खरीदना व पहनना पसन्द करती हैं । अच्छी से अच्छी घडी , गहने लेना पसन्द करती हैं इस के लिये अच्छा मेहनताना मिलने के बावजूद ये कई बार लोन भी ले लेती हैं जिस के परिणाम कई बार खतरनाक सिद्ध होते हैं।


तृतीय होती हैं कुछ कम पढ़ी लिखी होती हैं किन्तु इनके स्वप्न बडे होते हैं अधिकांशत: अपनी जरूरतों को धीरे धीरे इतना बढा लेती हैं कि दिशा भूल जाती हैं परिवार से अलग हो जाती हैं। 


फैशन यानी रिवाज कोई भी ही हो शुद्ध व संस्कारित हो अपने देश का हो तभी जीवन में सफलता व खुशी मिलती है।


अब हम बात करते हैं उन आदतों की जो अब फैशन के नाम पर घरों में हमारी जिन्दगियों में घुस गई हैं इनका निकल पाना असम्भव सा है 


1कामकाजी होने के कारण घर का काम न करना ।इस की वजह से मोटापा / आलस / घर परिवार में अन्य विसंगतियां उत्पन्न होती हैं। 


माना कि जॉब करने वाली स्त्रियों के पास घर के काम के लिये समय कम होता है किन्तु यह भी सत्य है कि ये भी फैशन माना जाता है कि कामवाली बाई से काम कराया जाये बेशक अधिक उर्जा अधिक समय लगे। 


2 चुस्त और तन्दरुस्त दिखने के लिये जिम जाना । विविध डाईट चार्ट के अनुरूप अपने खान पान की दिनचर्या रखना। कई बार इस के भी भयंकर परिणाम सामने आते हैं।


3 माँ न बनने -- ये तो कमाल ही है कई महिलायें तो जॉब के लिये शादी ही नहीं करती उन्हे अपना फिगर खराब नही करना , करती हैं तो ज्यादा उम्र में करती हैं उन्हे माँ बनने में काफी परेशानी का सामना करना पडता है, और ऐसा भी देखने को मिल्टा है कि काफी महिलायें माँ नहीं बनना चाह्ती । ये चिन्ता जनक विषय है । फैशन के नाम पर आज हम एकल परिवार तक आ पहुंचे हैं हमारी संस्कृति धीरे धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है।


4अहम-- महिलाओं का जॉब करना गृहस्थी की गाडी को चलाना। समरूपता से संगीनि का धर्म निभाना होता है, कभी कभी ऐसा भी होता है अहम की परिकाषठा घरों को तोड़ देती है। पति पत्नी ही नहीं बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाता है।


5 एकांतवास समय के आभाव, विशेष व्यक्तित्व, अहम व अन्य कई कारणों से जॉब वाली स्त्रियां समाज से दूर होती चली जाती हैं यहां तक कि रिश्तेदारी निभाना भी मात्र फोर्मैलटी लगता है । महानगरों में और स्थीति खराब है घर में चार सदस्य हैं तो वे भी छुट्टी वाले दिन ठीक से मिल पाते हैं अन्यथा भागमभाग ही रहती है।


6 भविष्य सच है बच्चे ही हमारा भविष्य हैं और इनकी प्रथम गुरु माँ होती है जो इनमें संस्कार के बीज रौपती है । आज बच्चों की मनोदशा और दिशा भंग होने का एक कारण ये भी है कि माँ जॉब में होने के कारण इन्हे पूर्णतः समय नहीं दे पाती वो लाड़-प्यार वो संस्कार अधूरे रह जाते हैं जो पूरे होने थे।देखा जाये तो स्तिथि विकट है।


किन्तु हमें सकारात्मक सोचना चाहिये इस स्थिति के लिये पूरा परिवार जिम्मेवार है पर वहीं आकर रुक जाती है सयुंक्त परिवार है कहां ?


7आधुनिकता की परिभाषा जॉब करने वाली कुछ ऐसी महिलायें या लड़कियाँ जो आधुनिकता की संज्ञा बेतरतीब कपडों / बॉय फ्रेंड बनाना व बदलना/ शराब व सिगरेट पीना या कोई नशा करना / बालों को विविध रंगों से रंगना / फटे कपडे पहनना / शरीर के विभिन्न हिस्सों को स्थायी रूप से मशीन से रंगवाना / बालों को रंगवाना व कटवाना /गलत संगत में भटकना / रात रात भर घर से बाहर रहने/ क्लबों में जाने से देती हैं जो उनके साथ साथ पूरे परिवार का भविष्य बर्बाद कर देती हैं। इन आदतों से बचना बहुत जरूरी है ये आधुनिकता नहीं ना ही ऐसा कुछ फैशन है।


फैशन के नाम पर अपनी सन्कृति व समाज नहीं छोड़ना चाहिये।


अंत में यही कहना चाहूंगी हर सिक्के के दो पहलु होते हैं सकारात्मकता यही है कि जॉब करने से स्त्रियों का आत्मसम्मान बढा है , जिन घरों की स्त्रियां जॉब करती हैं ऊन परिवारों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हुई है।आज के युग में प्रत्येक स्त्री / लड़की का शिक्षित होना व स्वावलंबी होना बहुत आवश्यक है। स्त्री विमर्श के एक दोहे से बात को विराम देना चाहूंगी।।।


"दह जाउं तो आग हूं, बह जाउँ तो नीर।


ढह जाउँ तो रेत हूं,सह जाउँ तो पीर।।


*सुषमा भंडारी, दिल्ली












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