Subscribe Us

जंगल जैसे घर हुये (दोहे)






*सुषमा भंडारी*
राजनीति की आग में क्यूँ जलता ये देश।
जंगल जैसे घर हुये कैसा ये परिवेश।।

छलिया नेता लोग सब,कैसे हो विश्वास।
पल - पल बदलें रंग ये,होते हैं ये खास।।

शिक्षा बिना समाज ये,होता है अपंग ।
यदि शिक्षित हो जाएं सब,महके सारे रंग। ।

बैर भाव अब बढ़ रहा,सिमट रहा है प्यार।
रिश्तों में अब जंग है,होती केवल हार।।

द्वेष आपसी त्याग कर,मन में भर लें  प्यार।
खुशियां ही खुशियां मिलें,जीवन में उपहार।।



*सुषमा भंडारी, फ्लैट नम्बर- 317,प्लैटिनम हाइट्स,सेक्टर-18 बी , द्वारका,नई दिल्ली- 110078 , मो.9810152263







शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ