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है भरा कल एक... (गजल)











*कमलेश व्यास 'कमल'*


 


है भरा  कल  एक  सीकर हो न हो


ये समां फिर ज़िन्दगी भर हो न हो।


 


तन किराए का महज कमरा समझ


इस जनम में घर मयस्सर हो न हो।


 


ज़िन्दगी भर आपको अपना लगे


क्या पता वो आपका घर हो न हो


 


हो कटीला पर धरातल ही सही


भावना का पार सागर हो न हो।


 


बाअदब  रहना  हमेशा  वक़्त से


वक़्त के हाथों में पत्थर हो न हो।


 


खूब  उड़ता  है  जरा  सी  देर  में


मन के पंछी को लगे पर हो न हो।


 


रूह   की   बातें   करेंगे   रूह   से


बोलने  को ढाई  आखर हो  न हो।


 


है मुनासिब आज का सोचें 'कमल'


आज हैं हम कल यहाँ पर हो न हो।


*कमलेश व्यास 'कमल' उज्जैन












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