*संजय जोशी 'सजग' रतलाम
हमारे यहां त्यौहार मनाने के लिए तीन सौ पैंसठ दिन भी कम पड़ते है ,कभी -कभी तो एक दिन में दो भी फँस जाते है l दिवाली का अपना अलग महत्व है ,लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए न जाने क्या- क्या जतन किये जाते हैं l मैं भी दि वाली लिए के अर्थ गणना का चिंतन कर रहा था एवं श्रीमती जी द्वारा पेश की गई भा री भरकम लिस्ट को को अलट-पलट रहा था , उसे देख कर मेरा ब्लड प्रेशर ऊपर नीचे होने लगा था ,दिन में तारे नजर आ रहे थे, मन में आशंका के काले बादल उमड़ घुमड़ रहे थे कि दिवाली है या दिवाला l
इसी बीच हमारे पड़ोसी जो सीनियर सिटीजन माने जाते सरकारी नियम से परे वे अपने आप को नहीं मानते है अचानक धमके कहने लगे और क्या तैयारी है?मेंने कहा काहे की ,वे बोले दीपावली की फिर वे कहने लगे एक पुरानी लोकोक्ति है" सदा दीवाली संत की बारह मास बसंत "आज के संदर्भ में सटीक नहीं बैठती न संत न बसंत सब कुछ बदल गया है अब तो त्यौहारों की आहट जब आती है तब समाचार पत्र ,विज्ञापन पत्र बन जाते है l बाजार ने दीपावली को पूरी तरह टेक ओवर कर लिया है और इसे कारोबार उत्सव बना दिया है l आजकल लोग चावार्क दर्शन पर चलने लगे है "ऋणं कृत्वा घृत पिवेत "अर्थात ऋण करके भी घी पिये l सुख भोग के लिए जो उपाय करना पड़े , उन्हें करें दूसरों से भी उधार लेकर भौतिक सुख -साधन जुटाने में हिचके नहीं ,शरीर मृत्यु पश्चात भस्मी भूत हो जाता है ,उसके बाद कुछ भी नहीं बचता इस तथ्य को समझ कर सुख भोग करें ,उधार लेकर ही सही l मैंने बीच में टोकते हुए कहा कि आजकल भारत वर्ष ही नहीं , पूरी दुनिया इसी चावार्क दर्शन पर चल रही है l क्या जनता , क्या सरकार सब कर्ज में गले तक डूबे हैं पहले कर्ज लेने में अपमान लगता था अब शान समझा जाता है l लोन देने वाले और लेने वाले दोनों तैयार है फिर क्या,बाजार गुलजार है l वे आगे कहने लगे कि दीपावली का एक पहलू लक्ष्मी पूजा से जुड़ा लेकिन इसमें पहले यह लक्ष्मी नहीं थी जो आज के बाजार की असीमित उपभोग की देवी हैl बल्कि यह लक्ष्मी दरिद्रता से मुक्ति और घर में इतने धन धान्य की इच्छा से जुडी थी जिसमें "साईं इतना दीजिये जिसमे कुटुंब समाय ,खुद भी भूखा न रहे और साधु न भूखा जाय l मैं ने कहा अब यह यह थ्योरी काम नहीं करती है l ,संतुष्टि ही मृत्यु लगने लगी है l झकाझक रोशनी में लक्ष्मी वाहन उलूक परेशान हैं ,क्योकि अँधेरा प्रिय और बम ,फटाकों से डरता है l और अब दोनों की ही अति है l लक्ष्मी माता परेशान है हैरान है इस उलूक की क्या गलती सब किया धरा तो मेरे चाहने वालो ने l कैसे हो सवारी ? यूँ भी राजनीति में तो रोज- रोज मनती है दीपावली और फूटते है 'बम' मंहगाई के ,घोटालों के, चलते हैं 'रॉकेट' आरोप -प्रत्यारोप और विवादित बयानों के , जलती है' फुलझड़ी ' झूठे आश्वासनों की ऐसी मनती रोज दीपावली l
वे आगे कहने लगे दीवाली तो देश में मनती है सफेदपोश की, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों की l बाबू की दीवाली तो सिर्फ गिफ्ट पाने की है लश्मी दर्शन तो उनके भाग्य में है जो उन से ऊपर है l मुद्रास्फीति दर बढ़ने से सब और महंगाई है आम जनता की तेल, गैस बेलगाम है ,नोटबंदी से बेरोजगारी ,जीएसटी से व्यापार ठप्प है l सरकार की दीवाली है आम जनता का दिवाला है l भौतिकवाद ने कराई महिलाओ की दीवाली ,बेचारे पतियों का दिवाला है l कुटिल मुस्कान से आँख मटकाते हुए कहने लगे कि आपका क्या विचार है ? दिवाली है या दिवाला मैंने भी हंसते हुए जवाब दिया कुछ भी हो हम तो मनाएंगे ,दिवाली शान से l दिवाले की बात बाद में देखी जायेगी l
*संजय जोशी 'सजग' रतलाम
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